Sunday, April 26, 2020

ये वक्त भी गुज़र जाएगा। यहां कुछ भी शाश्वत नहीं है सिवाय माया ,आत्मा और परमात्मा के। माया ये जो कुछ भी दृश्य ,प्रपंच ,तमाशा हम देख रहें हैं ये सब माया ही है। सार्स -कोव -२ का फैलाया मायाजाल। किसी को दोष देना मुनासिब नहीं है यह कायनात के कर्मों का ही भोग फल है।चीन वीन का इसे दुनिया भर में फैलाने में  कोई  हाथ -वाथ नहीं है।

जो माया परमात्मा की परमदासी है उस प्रकृति नटी को हमने अपना मान समझ लिया। ये सब मेरा ,मेरा और मेरा कुछ भी मेरा नहीं है। इसी गुमान में हम फूले रहे। ये शरीर जिसपे मैं  नार्सिसिष्ट बना आत्मविमोहित हूँ रीझ रहा हूँ यह भी उधार का जुगाड़ है। हवा -पानी -मिट्टी - आकाश -अग्नि सब प्रपंच है ,माया है इनका  संयोग जिसे मैं अपना शरीर कह समझ रहा हूँ।बस एक टैन्योर भर है एक कालावधि जिसके ७२ -७३ वर्ष मैं (ये मैं कौन है भाई )भुगता चुका हूँ। हाँ ये मैं वास्तिवक मैं "रियल आई "तमशबीन है द्रष्टा यही है इसके आदेश पर ही ये काया चल फिर रही है। हम सब माया में नहाये हुए हैं कॉस्मिक बैकग्राउंड रेडिएशन की तरह।
http://btg.krishna.com/were-all-maya

(ज़ारी )

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