"सम्मान के बा -वज़ूद स्वास्थ्य कर्मियों से बे -रूखी क्यों "(३० अप्रैल २०२० ,,nbteditpage@gmail.com)बरसों- बरस स्वास्थ्य पन्ना लिखने वाले यतीश अग्रवाल मर्माहत पीड़ा संग ये सवाल पूछते हैं।क्या यही हमारा नागर बोध सिविलिटी का स्तर है या यह सीधे -सीधे एहसान फरामोशी का मामला है। कर्तव्य मोर्चे पर अनवरत तमाम कष्ट उठाने वाले हमारे तमाम कोरोना सैनिकों के खिलाफ ऐसे बदसुलूकी करने वालों के खिलाफ वही किया जाना चाहिए जो उत्तरपदेश का राजनीतिक प्रबंध कर रहा है -सात साल की गैर -ज़मानती जेल और दो लाख रूपये जुर्माना। अखबारों में ऐसे बे -लज्जत बे -मुरव्वत ,बे -वफ़ा गुनहगारों के चित्र भी प्रकाशित हों चैनलों से इनका पूरा परिचय भी दिया जाए ताकि इन आस्तीन के साँपों को पहचान लिया, जाए।ये रहम के काबिल नहीं हैं मामला किसी पंथ या सम्प्रदाय का नहीं है कर्तव्य निष्ठ समर्पित व्यक्ति की गरिमा को बचाये रखने का है।
अपनों से मुरव्वत का तक़ाज़ा नहीं करते
सहराओं में साए की तमन्ना नहीं करते
दो दिन की जो बाक़ी है तहम्मुल से बसर कर
जो होना है हो जाएगा सोचा नहीं करते
वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ),२४५ /२ ,विक्रम विहार ,शंकर विहार परिसर ,दिल्ली -छावनी -११० ०१०
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