Friday, September 4, 2020

दिक्कत यह है हम 'पावर आफ नाव ' ,इस पल अभी यहीं क्या है हम इससे कतई नावाकिफ बने रहते है -जबकि जो भी है बस यही एक पल है



जो  दीसे सो माया - ये सारा दृश्य जगत ,प्रपंच  माया है. जो भी कुछ दीखता है प्रकट है मुखर है वह माया है. माया बोले तो आज है कल नहीं है, है भी और नहीं भी और दोनों ही नहीं भी है। जो पैदा हुआ है उसका मृत्यु आलेख उसी क्षण लिख दिया जाता है। एक टेन्योर कालावधि हो जाता है वह। होने न होने के बीच का अंतराल काल हो जाता है वह अथवा समय बद्ध समय के दायरे में सीमित हो जाता  है।जो पैदा हुआ वह शरीर कहलाता है जो विकसता है बढ़ता शिखर छूता  है , फिर छीजता है विनष्ट हो जाता है।

जीवन और मृत्यु के बीच  की अवधि ही काल है।

समय का भाव समयानुभूति सापेक्षिक होती है। दुःख के दिन अब बीतत नाहीं -कभी हम गाते हैं और कभी कहते हैं समय न जाने कहाँ उड़ गया अभी कल ही की तो बात है :इस शहर में एक दस्त था वो क्या हुआ ?

समय ही करता है भोक्ता है हम सब प्राणी भुक्त हैं :

समय करे नर क्या करे ,
समय समय की बात ,
किसी समय के दिन बड़े ,
किसी समय की रात।

दिक्कत यह है हम 'पावर आफ नाव ' ,इस पल अभी यहीं क्या है हम इससे कतई नावाकिफ बने रहते है -जबकि जो भी है बस यही एक पल है। आगे भी जाने न तू ,पीछे भी जाने न तू -----
फिर भी हम अभिज्ञ बने या तो अतीत हो जाते है व्यतीत के जाल में फंस जाते है यहां भविष्य की अनिश्चितता से भयाकुल।

जबकि हम यह शरीर नहीं हैं शरीर हमारा है ,शरीर से श्रेष्ठ मन है मन से बुद्धि और बुद्धि से पर (श्रेष्ठ )है हमारा आत्मा जो शरीर में आने पर जीवात्मा कहलाता है , बद्ध - आत्मा हो जाता है वह अपने विशुद्ध रूप में काल से परे है कालबद्ध नहीं है। हम वही शुद्ध बोधिसत्व हैं ,आत्मावान ,आत्मवत बनो ,देह भाव से परे देही भाव में रहो। करता न भोक्ता दृष्टा ,साक्षी बनो ,विटनेस हो जाओ। काल से बाहर आ जावोगे। यकीन न हो तो करके देख लो।

(काल के दो छोरों पर रहने वाले आनंद से वंचित रहते हैं -NBT ,3se,2020 ,कृपया इस सेतु को भी पढ़ें यही प्रेरक है इस आलेख का )
www.speakingtree.nbt.in

https://www.youtube.com/watch?v=WWlQwy2-4_M


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